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ग़ज़ल
बहुत पहले से उन क़दमों की आहट जान लेते हैं
तुझे ऐ ज़िंदगी हम दूर से पहचान लेते हैं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
सर में सौदा भी नहीं दिल में तमन्ना भी नहीं
लेकिन इस तर्क-ए-मोहब्बत का भरोसा भी नहीं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
किसी का यूँ तो हुआ कौन उम्र भर फिर भी
ये हुस्न ओ इश्क़ तो धोका है सब मगर फिर भी
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
नर्म फ़ज़ा की करवटें दिल को दुखा के रह गईं
ठंडी हवाएँ भी तिरी याद दिला के रह गईं
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
कुछ इशारे थे जिन्हें दुनिया समझ बैठे थे हम
उस निगाह-ए-आश्ना को क्या समझ बैठे थे हम
फ़िराक़ गोरखपुरी
ग़ज़ल
तुम्हें क्यूँकर बताएँ ज़िंदगी को क्या समझते हैं
समझ लो साँस लेना ख़ुद-कुशी करना समझते हैं